स्त्री और पुरुष के बीच हर रिश्ता जायज है, बशर्ते उसमें धोखा न हो ।
डॉ राममनोहर लोहिया ऐसे ही नासमझ लोगों को विवेक देने की कोशिश इस प्रसिद्ध कथन में कर गए थे: स्त्री और पुरुष के बीच हर रिश्ता जायज है, बशर्ते उसमें बालात्कार और वादाखिलाफी यानी धोखा न हो। अमृता के पति बहुत गरिमा से कह चुके कि वे अलग हो चुके हैं। तलाक के कागजात मिलने पर जब दिग्विजय सिंह और शालीन टीवी पत्रकार अमृता राय का संबंध विवाह में परिणत होगा, मैं उन्हें बधाई दूंगा। न हो तब भी यह उनका नितांत निजी मामला होगा। न आपको इसमें ताकझांक या मुहल्ले की सयानियों वाली खुसुर-फुसुर करने का हक हासिल है न मुझे।
मगर संघ परिवार के सिपाही यही कर रहे हैं। वे प्रेम के जन्मजात दुश्मन हैं। किसी का घर बसे न बसे, दुश्मन है तो उजड़ जरूर जाए; न उजड़े तो मौके पर खुद आग में झोंक आ सकते हैं। यह चुनाव ऐसा मौका है जब संघ की प्रतिष्ठा बुरी तरह दांव पर है; चुनाव भाजपा नहीं संघ लड़ रहा है। संघ के मानस और मशीनरी को तजुर्बों के साथ हर स्तर की खुसुर-फुसुर में महारत हासिल है।
अब बात जशोदाबेन-मोदी की। मुझे किसी ने लिखा है कि तब बोले, अब चुप क्यों हैं। इसलिए कि दोनों जुदा किस्म के मामले हैं, बेवकूफ ही उन्हें एक तराजू में रख सकता है।
मोदी ने शादी की,
- भारत भ्रमण पर निकलने का कहकर पत्नी को हमेशा के लिए छोड़ आए।
- न उसे प्रेम दिया, न पत्नी कहाने का सुख।
- न तलाक दिया, न भरण-पोषण में सहारा।
- यह धोखा ही माना जाएगा।
- बाहर रह कर भी खयाल रखते तो शायद कुछ भले कहलाते।
- पर अपने आप को ही आगे बढ़ाना था: सो अविवाहित बताकर प्रचारक का काम पा गए।
- इसके बाद उस विवाह क़ो सार्वजनिक स्वीकार कभी न कर सके।
- चार बार विधानसभा चुनाव के परचे में विवाहित-अविवाहित का खाना खाली छोड़ आए।
- इसीलिए जशोदाबेन ने मीडिया में इसे "नियति" और "बुरा वक्त" ही नहीं कहा, मोदी को "झूठ" बोलने वाला बताया।
- उन्होंने सही कहा: हलफ लेकर भी चार बार विधानसभा चुनावों में न विवाहित न अविवाहित, अचानक लोकसभा में विवाहित।
- फिर भी पत्नी का घर आगमन नहीं, सादी वर्दी में उस पर पुलिस का घेरा और चुपचाप प्रदेश से बाहर।
- दशकों से अकेली पत्नी के एकांत और निजता तक का सम्मान नहीं।
- एक उजड़ा घर बसाना चाहता है, दूसरा बसा घर चुपचाप उजाड़ कर बैठा है।
- एक तरफ सच पर परदा नहीं है, दूसरी तरफ पत्नी, समाज, संघ, पार्टी और निर्वाचन आयोग तक से परदेदारी है!
किस मुंह से Rajesh Srivastav बार-बार कहते हो कि जशोदाबेन के मामले में मोदी पर लिखा, दिग्गी राजा पर क्यों नहीं लिखते?
क्या दोनों मामलों में कोई समानता है?
मैंने कभी दिग्विजय सिंह की तारीफ नहीं की, पर आज कहूंगा कि उन्होंने सहजता के साथ साहस दिखाया है, जिससे मोदी जैसे स्री-विरोधी नीचा ही देखेंगे।